"हिंदी राष्ट्र निर्माण की बौद्धिक सामर्थ्य की विरासत है": प्रो. सिं
"हिंदी वतन के कर्ज और फर्ज से मुक्ति की भाषा है": प्रो. सिंह
" हिंदी सनातन संस्कारों के मूल्यों की संवाहिका है": प्रो. सिंह
"हिंदी सिर्फ एक भाषा ही नहीं, राष्ट्र निर्माण की स्पंदन है": प्रो. सिंह
चांद: उग्र प्रभा न्यूज- शासकीय महाविद्यालय चांद में विश्व हिंदी दिवस पर पर "हिंदी कर्ज, फर्ज़ व थे मर्ज से मुक्ति की भाषा" विषय पर आयोजित व्याख्यान में प्रो. अमर सिंह ने कहा कि हिंदी सिर्फ एक भाषा ही नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण की स्पंदन है। हिंदी में राष्ट्रनिर्माण की बौद्धिक सामर्थ्य की सांस्कृतिक विरासत है। यह भारतीयता के सनातन आदर्शों, मूल्यों व मातृभूमि पर फ़िदा होने के संस्कारों की संवाहिका है। यह वतन के कर्ज व मांटी का फ़र्ज़ अदा करने की भाषा है। हिंदी भाषा सिर्फ़ अभिव्यक्ति ही नहीं, अपितु वतन पर मर मिटने की भक्ति है। प्रो.रजनी कवरेती ने कहा कि हिंदी भारतीय भावजगत का प्रतिनिधित्व, पौराणिक विरासत व ऋण उतारने की समृद्ध भाषा है। प्रो. आर. के. पहाड़े ने कहा कि हिंदी सम्पूर्ण विश्व में भारत की ब्रांड एंबेसडर है। मां के हाथ का खाना व हिंदी में लिखना दोनों तुष्टि प्रदान करते हैं। प्रो. विनोद कुमार शेंडे ने कहा कि हिंदी हमारी उन्नति का मूल है और ह्रदय के शूल की रामबाण औषधि है। प्रो. रक्षा उपश्याम ने कहा कि हिंदी हिंद के हृदय की सम्राट व राष्ट्र की प्राणवायु है। सपना वर्मा ने कहा कि हिंदी का लोक साहित्य भारतीय एकीकरण की मिसाल है, मानवीयता का स्पर्श है और गुलामी से मुक्ति की अभिव्यक्ति है। आसना वर्मा ने कहा कि हिंदी स्वराज स्थापना का आधार, आत्मनिर्भर भारत बनाने की मंत्रशक्ति व आत्मविश्वास की पोषक है। महिमा वर्मा ने कहा कि हिंदी भारत के लिए संप्रेषण कौशल, भावनात्मक आमोद प्रमोद और मां, मातृभूमि व मातृभाषा के प्रति सम्मान देने का माध्यम है। सोनाली चौरिया ने कहा कि हिंदी साहित्य का गौरव समग्र राष्ट्र की संचित निधि है जिस पर भविष्य के सुनहरे भारत की नींव रखी जा सकती है। चांदनी चौरिया ने कहा कि हिंदी सांस्कृतिक नवचेतनावाद के मार्फ़त वैश्विक स्तर पर उड़ने के पंख देती है। संध्या चौरिया ने कहा कि हिंदी के विकास में विलाप नहीं, जनमानस के जीवन में लोक व्यवहार की दरकार है।
अंजू वर्मा ने कहा कि हिंदी को विश्वस्तर पर स्थापित होने में अगर कोई खतरा है तो वह सिर्फ़ इसके मातृभाषियों से ही है, किसी अन्य से नहीं। प्रांजल सोनी ने कहा कि मां, मातृभूमि व मातृभाषा के प्रति सम्मान किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी ताक़त होते हैं। प्रियंक सोनी ने कहा कि मां अपनी संतानों के शोक का, मातृभूमि अपने रहवासियों की निराशा का एवं मातृभाषा अपने बोलनेवालों की कुंठाओं हरण करती है। सूरज वर्मा ने कहा कि किसी भी राष्ट्र के पुनर्निर्माण में इन तीनों की खुशहाली विकास के नवीन आयाम तय करती है। तभी तो कहा है कि 'जननी, जन्मभूमि च स्वर्गादपि गरीयसी'। लक्ष्मी चौरे ने कहा कि जन्मभूमि वह क्रीड़ास्थल है जहां हम ताउम्र खुशियों से लबालब होकर तमाम भावनात्मक आमोद प्रमोद की क्रीड़ाएं करते हुए स्वाभिमान से फुदकते रहते हैं। श्रद्धा वर्मा ने कहा कि हिंदी हमारे लिए सम्प्रेषण का माध्यम बन उन्नति के नवद्वार खोलती रहती है। मोहिनी वर्मा ने कहा कि एक सफल राष्ट्र इन तीनों के प्रति हमेशा समर्पित, कृतज्ञ और सम्मानित होकर नतमस्तक रहता है। कार्यक्रम में कॉलेज के समस्त छात्र उपस्थित रहे।