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पिछड़ा कमजोर वर्ग के प्रति दोहरा मापदंड न्यायोचित नहीं :एस.आर.शेंडे

 न्यायिक,उच्च सेवाओं में नगण्य प्रतिनिधित्व से कमजोर वर्गों को न्याय पाने में कठिनाई  


संविधान में कमजोर वर्गों के लिए लागू आरक्षण की कोई समय सीमा तय नहीं 

सौंसर उग्र प्रभा समाचार ( छिंदवाड़ा ) :संविधान के शिल्पकार डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के अथक प्रयासों से संविधान में शैक्षणिक व सामाजिक रूप से पिछड़े कमजोर  वर्गों- अनुसूचित जाति/जनजाति,पिछड़ा वर्ग समुदाय को विकास व समानता की मुख्य धारा से  जोडने व प्रतिनिधित्व देने  के उद्देश्य से विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से  एकसाथ आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। दुर्भाग्य से शासन कर्ताओं ने अजा अजजा को तो आरक्षण लागू किया परंतु 65% आबादी वाले पिछड़ा वर्ग को सालों बाद 1989 में वी.पी. सिंह सरकार ने मात्र 27 % लागू किया,आजतक  आरक्षित पदों का कोटा पूरा नहीं किया जा सका। राजनीति विज्ञान के अध्यापक रहे साहित्यकार एस.आर .शेंडे ने बताया कि,जब भी पिछड़ा वर्ग व अन्यों  को आबादी के अनुपात में  आरक्षण देने की बात हुई,इंदिरा साहनी वाले 50% से अधिक सीमा से सम्बंधित केस  का हवाला देकर चुप किया जाता रहा। अब जबकि,खुद सरकार एवं सुप्रीम कोर्ट ने सवर्णों को भी अलग से  10 % आरक्षण देकर  पूर्व में लागू 50% से अधिक आरक्षण को वैध करार दिया ,तब पिछड़ा वर्ग एवं अन्यों के प्रति के प्रति दोहरा मापदंड  न्यायोचित नहीं है। सवर्ण आरक्षण के संबंध में उनकी आबादी का कोई डाटा पेश नहीं किया गया,फिर ओबीसी एससी.एसटी. का डाटा क्यों मांगा जाता है । दरअसल 50 % की आरक्षण की सीमा का लाभ शेष बचे 51% अनारक्षित सामान्य सवर्ण वर्गों को बगैर कोई झंझट से अनायास ही मिल रहा है,और बदनाम आरक्षित वर्ग को किया जाता है। श्री शेंडे ने स्पष्ट किया कि,शैक्षणिक व सामाजिक  रूप से संविधान में लागू आरक्षण की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है।जब तक इन वर्गों का शासकीय  तौर पर उत्थान प्रमाणित नहीं होता,शुरू रहेगा। हाँ,यह बात सत्य है कि,राजनीतिक आरक्षण मात्र 10 वर्षों के लिये था,जिसे राजनीतिज्ञ अपने फायदे के लिए संशोधन के जरिए बढाते रहते है । खास बात यह है कि, आरक्षित वर्ग के जनप्रतिनिधि अपनों के प्रति कम पार्टी के प्रति ज्यादा वफादार होते हैं,पार्टी के एक तरह से बंधुआ मजदूर होते है ।इस कारण कमजोर व आरक्षित वर्गों का अपेक्षित उत्थान नहीं हो पाया है ।आरक्षण में क्रीमीलेयर की शर्त विलोपित की जानी चाहिए। जानबूझकर रखे जाने वाले  लाखों रिक्त आरक्षित पदों का बैकलॉग भरा जाना चाहिए। सरकारी उपक्रमों का  निजीकरण रोका जाना चाहिए।न्याय पालिका में सबको प्रतिनिधित्व देने के लिए दोषपूर्ण कॉलेजियम सिस्टम के स्थान पर अखिल भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति की जानी चाहिए।

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