भाजपा पार्षद प्रत्याशी लोकेश डेहरिया जनसम्पर्क के दौरान फावडा बुलवाकर स्वयं श्रमदान कर जल निकासी व्यवस्था की
छिंदवाड़ा - नगर निगम पालिक चुनाव वार्ड नं 47 भाजपा पार्षद प्रत्याशी लोकेश डेहरिया ओर महापौर प्रत्याशी अनंत कुमार धुर्वे प्रचार करने काशी नगर महुआ टोला पहुंचे इस दौरान काशी नगर में रेलवे पुल के नीचे वाले रास्ते पर बारिश का पानी जमा हो गया था। लोकेश डेहरिया ने फावड़ा बुलवाकर खुद ही कार्यकर्ताओ की सहायता से
पानी निकासी के लिए नाली बनाई। जिससे जमा पानी की निकासी हो पाई। प्रत्याशी के श्रमदान सें क्षेत्रीय जनता अनुमान लगाने लगी है। अब वार्ड में विकास की गंगा बह सकती है। शासन प्रशासन की मदद सें समास्याओ का समाधान लोकेश डेहरिया के नेतृत्व में हो सकता है।लोकेश डेहरिया शोषित पीढित समास्या सें ग्रसित व्यक्ति के मदद के लिए हमेशा तात्पर रहते हैं इसी के चलते वार्ड वासियों का जनसमर्थन लोकेश डेहरिया को मिल रहा है।
सूर कवि अमित पुरी शिकोहाबादी पुणे महाराष्ट्र की रचना
जीवन भर इस अनहोनी की होती उथल पुथल से,
बच पाया है कौन भला इस निठुर नियति के छल से।
निज प्रसन्नता सुख भविष्य सब वश में कर लेता है,
एक कष्ट जीवन का सारा जीवन हर लेता है।
अपने ही घर में जब खुद कर लोगे तुम अंधियारा,
क्योंकर कोई फिर आकर बांटे तुमको उजियारा।
अश्रु शत्रुता कर लेते हैं आंखों के काजल से,
बच पाया है कौन भला इस निठुर नियति के छल से।
बुद्धि, विवेक, तेज, कौशल, सब स्वयम क्षीण करता है!
भूतकाल में जीने वाला मरने तक मरता है।
अरी देख उस आने वाले इठलाते सावन को!
और नए प्रियतम में कर महसूस नए यौवन को।
आने वाला कल अच्छा होगा उस बीते कल से,
बच पाया है कौन भला उस निठुर नियति के छल से।
कभी कभी रहबर मिलते हैं पथरीली राहों में,
कभी कभी खुशियां चलकर आती हैं खुद बाहों में।
कभी कभी कविता में कवि का रूप सृजन होता है,
कभी कभी मुरलीधर कान्हा प्रेम मगन होता है!
कभी कभी मिलता है सोना रेतीले मरुथल से!
बच पाया है कौन भला उस निठुर नियति के छल से।
अब न कभी भी अग्नि परीक्षा किसी काम की होगी,
सदा राम की थी यह सीता सदा राम की होगी।
जबतक इस सावित्री का हिय मुझे न बिस्राएगा
स्वयम काल भी तबतक मुझको दूर न कर पाएगा।
हर होनी टल जाएगी निज दृढ़ विश्वास अटल से
बच पाया है कौन भला इस निठुर नियति के छल से।
एक नया रवि तुमपर किरणे बिखराने आया है,
एक फूल यह सूना आंगन महकाने आया है।
कितनी चट्टानों पहाड़ की ठोकर यह सहती है,
अमित समय का दामन थामे किन्तु नदी बहती है।
बदल रहा है जग, तुम बदलो जग की फेर बदल से!
बच पाया है कौन भला इस निठुर नियति के छल से।।।
@अमितपुरी शिकोहाबादी। मो नो9667069597, 9318322705।