*"हर इल्ज़ाम सर पर लिए जा रहे है*
*ये किसके लिए हम जिए जा रहे है"*
*पाठक मंच की गोष्ठी में कवियों ने बांधा समां*
*छिंदवाड़ा -* साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद की जिला इकाई पाठक मंच (बुक क्लब ) छिंदवाड़ा द्वारा
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कौशल किशोर श्रीवास्तव की अध्यक्षता में पुस्तक परिचर्चा व काव्य गोष्ठि का आयोजन चारफाट्क स्थित स्वामी विवेकानंद ग्रंथालय में किया गया ! कार्यक्रम में मुख्य अतिथि विवेकानंद स्मारक समिति के युवा समाज सेवी अधिवक्ता अंशुल शुक्ला तथा विशेष अतिथि हास्य व्यंग के आलराउंर कवि रत्नाकर रतन थे! कार्यक्रम का शुभारंभ सुमधुर कंठ की धनी अनुराधा तिवारी द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती की वन्दना से हुआ कार्यक्रम के प्रथम चरण में प्रसिद्ध कवि भवानी प्रसाद मिश्र की कृति "कुछ नीति कुछ राजनीति" व लेखिका डॉ. रंजना आरगुडे की मां नर्मदा परिक्रमा पर केंद्रित कृति "तत्वमसि" पर परिचर्चा कराई गई जिसका संचालन विशाल शुक्ल ने किया तथा उक्त कृतियों की पृष्ठभूमि पर कवि हरिओम माहोरे और कवि शशांक दुबे ने प्रकाश डाला! परिचर्चा के दौरान उपस्थित पाठको ने भी अपने अपने विचार व्यक्त किए! कार्यक्रम के दूसरे दौर में कवि नेमीचंद व्योम के शानदार संचालन में आयोजित काव्य गोष्ठी में नगर व नगर के बाहर से आमंत्रित कवियों ने एक से बढ़कर एक अपनी मनमोहक कविताओं से समां बांधा!
कवियत्री अनुराधा तिवारी "अनु" ने अपनी देश भक्ति से ओतप्रोत रचना प्रस्तुत की..
*"वीर रणबांकुरे के शौर्य का प्रमाण है*
*ये भारती का गौरव है आन बान शान है"*
चौरई से पधारे कवि रहेश वर्मा ने पढ़ा...
*"दिल की गहरी चोट में भी *मुस्कुराना चाहते हैं*
*लाख धोखा हो तुम्हारा दिल लगाना चाहते हैं*
*बोलना हमने सिखाया लीलना हम ने सिखाया*
*हम क्यों हमारी संस्कृति को मिटाना चाहते हैं"*
सेना से सेवानिवृत्त होकर लौटे कवि सतीश आनंद ने मानवीयता पर पढ़ा..
*"फरेब की दुकान पर ईमान बिक रहा है*
*चंद सिक्कों के लिए इंसान बिक रहा है"*
चांद से पधारे कवि श्रीकांत सराठे ने हिंदी प्रेम को शब्दो में गढ़ा...
*"हिंदी बंदगी सादगी है*
*हिंदी उद्गम समागम है"*
कवि राजेंद्र यादव ने बेबसी पर कलम चलाई..
*"हर इल्ज़ाम सर पर लिए जा रहे है*
*ये किसके लिए हम जिए जा रहे है"*
आस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाने वालों पर चुटकी लेते हुए कवि शशांक पारसे ने पढ़ा...
*"तेरे वजूद को जिसने नकारा मेरे राम*
*वो जा जाकर तेरे दर पर आचमन करते हैं"*
इसी क्रम को वीर रस के कवि शशांक दुबे ने आगे बढ़ाया
*"मर्यादा को पालकर कैसे बने महान*
*नर को होते देख लो कर्मों से भगवान"*
चिंतन की कविता से कवि अनिल ताम्रकार ने तालियां बटोरी...
*"जब भी सच कहने से मैं डरने लगता हूं*
*घुटने लगता है दम और मरने लगता हूं*
*कोई जब आईना मुझको दिखलाता है*
*खुद अपनी ही नजरों से गिरने लगता हूं"*
संगीता श्रीवास्तव "सुमन" ने अपनी ग़ज़ल के रंग बिखेरा
*"यूँ हैं वाबस्ता तेरी तस्वीर से,*
*हम बँधे हों जिस तरह ज़ंजीर से*
*जब जलानी चाही तेरी चिठ्ठिया,*
*ख़ुशबुएं आने लगीं तहरीर से"*
कार्यक्रम का संचालन कर रहे कवि नेमीचंद "व्योम ने पढ़ा...
*"मन का मैल अगर ज्यों का त्यों*
*लाख संवारो तन क्या होगा"*
हरिओम माहोरे ने देश भक्ति की रचना पढ़ी..
*"हार से ना डरे प्रेम हर पल किए*
*आग में भी जले, प्रेम हर पल किए*
*जब जले यूं जले, आग से ना डरे*
*देश के प्रेम में, कष्ट सबके हरे"*
प्रकृति पर केंद्रित मोहिता मुकेश कमलेंदु ने रचना पढ़ी...
*"प्रकृति का चरित्र कई हिस्सों में बट गया*
*इंसान के कर्मों से अंतर्मन फट गया*
*चीख रही चिल्ला रही बेचारी धरती माता*
*मत काटो मेरे हाथ पैरों को कर रही यही आशा"*
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि युवा अधिवक्ता अंशुल शुक्ला ने स्वामी विवेकानंद जी के संस्मरण और रामचरित मानस के माध्यम से आज की युवा पीढ़ी के लक्ष्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला! कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम के विशेष अतिथि कवि रत्नाकर रतन भीे अपनी कविताओं और कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ कौशल किशोर श्रीवास्तव ने अपनी कविताओं, गजलों और जोरदार चुटीलेे व्यंग के माध्यम से कार्यक्रम को ऊंचाइयों प्रदान की ! पाठक मंच के संयोजक विशाल शुक्ल ने कार्यक्रम की सफलता पर स्वामी विवेकानंद ग्रंथालय प्रबंधन समिति सहित उपस्थित जनों का विशेष आभार व्यक्त किया!
