18 माह की उम्र में माँ - बाप को खोने के बाद भी श्री एन एस बरकडे कढी मेहनत संघर्ष करके सहायक आयुक्त(क्लास वन अधिकारी) के पद पर पंहुचे
*सफलता की प्रेरणा दायिक मार्मिक सच्ची कहानी*
*आदिम जाति कल्याण विभाग छिंदवाड़ा में पदस्थ सहायक आयुक्त श्री एन एस बरकडे के संघर्ष भरा बचपन से कमिश्नर तक का सफरनामा*
जीवन परिचय - श्री नरोत्तम बरकडे का जन्म 02 अप्रेल 1970 को एक किसान मजदूर परिवार पिता श्री गोनसिंग बरकडे एवं माता श्रीमती ब्रजकुवर बाई के घर ग्राम सरेखा कला थाना उंगली जिला सिवनी मध्यप्रदेश में एक आदिवासी परिवार में हुआ।माता पिता के अलावा आपकी एक बडी बहन मुन्नी बाई है जो आपसे ढेड साल उम में बडी है। पिताजी पेशे से किसान मजदूर थे। लकडी घास बेचकर परिवार का पालन पोषण करते थे। एक दिन पिता जी लकडी लाने के लिए जगंल गये हुए थे। और अचानक तेज बारिश के साथ आकाशीय बिजली की चपेट में आने के कारण पिता का देंहात हो गया तब नरोत्तम 18 माह के थे। पिता का भी चेहरा पहचानने समझने यौग्य नही थे।और पिता का छाया बेटा बेटी एवं पत्नी से उजड गया। घर की जिम्मेदारी अचानक माताजी पर आ गई। और संघर्ष करते करते पिता के देहांत के तीन माह बाद माता का भी देंहात हो गया। अब नरोत्तम एवं बडी बहन मुन्नी अनाथ हो चुके थी अभी भी माता पिता का चेहरा याद नही है। महज दो और तीन साल उम्र थी और ईश्वर ने इतना बडा दुख दोनो बहन भाइयो के सिर पर बोझ रख दिया, दोनो बच्चो को मामा मामी की शरण में रिश्तेदारों ने छोड दिया। नन्हीं सी उम्र में माता पिता को खोने के बाद मामा मामी को ही पुर्ण रुप से माता पिता समझने लगे मध्यकाल बचपन मे जब थोडी समझदारी आई तब रिस्तेदारो के माध्यम से पता चला कि आपके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है जो परवरिश कर है मामा मामी है। अत्यंत गरीबी परिस्थिति में लालन पालन पोषण हुआ फिर स्कूल में नाम दाखिला कराया गया।
*शिक्षा*- श्री नरोत्तम बरकडे की प्राथमिक शिक्षा शासकीय प्राथमिक शाला सरेखा मे हुई एवं माध्यमिक, हायर सेकंडरी शिक्षा शासकीय शाला सरेखा से छात्रावास मे रहकर हुई। कक्षा ग्यारहवीं में कला संकाय लेकर 12वी तक की पढाई पुर्ण की एवं स्नातक की पढाई बरघाट शासकीय महाविद्यालय से बीए सन 1992 मे पुर्ण किये । इन दिनो श्री नरोत्तम बरकडे को भारी समास्या का सामना करना पढा जंगल के सहारे लडकी घास भूस बेचकर अपनी आवश्यकता की पुर्ति करना पढा। स्नातक पुर्ण होने के बाद मेहनत और संघर्ष अनाथ जीवन सुखीमय जीवन में बदलने की कवायत शुरु हुई है और उच्च श्रेणी शिक्षक के पद पर पहली नौकरी लगी फिर किस्मत का पिटारा खुलता अह्सास हुआ और दो माह बाद पंचायत एवं ग्रामीण विभाग में ADEO के पद पर 1993 को चयन हुआ और शिक्षक की नौकरी छोड़कर ADEO की नौकरी मंडला जिले के मोहगांव जनपद मे 1993-95 तक किया । पहले बार सन 1993 को पीएससी की परीक्षा में बैठकर पहले ही प्रयास में सफलता हासिल की और सहकारिता निरीक्षण के पद पर सन 1995 को चयन हुआ। 1995-99 तक सहकारिता विभाग मे सेवा दियें। अब मन में कुछ बढा और बढने का सपना चलने लगा औरपुनः दूसरी बार सन 1996 में पीएससी की परीक्षा में बैठकर फिर सफलता कदमो में चूम गई। और सन 1999 में जिला संयोजक आदिम जाति कल्याण मंडला पर हुआ। बर्ष 2004 में सहायक आयुक्त के पद पर जबलपुर जिले में पदोन्नति हुई। एवं विभिन्न जिलों में सहायक आयुक्त के पद पर स्थानांतरण हुआ एवं वर्तमान में छिंदवाड़ा जिले में सहायक आयुक्त आदिम जाति कल्याण विभाग में पदस्थ है। कठिन वितरित परिस्थितियों की ठोकर खाकर आज आदिम जाति कल्याण विभाग कमिश्नर एन एस बरकडे के हाथो में छिंदवाड़ा जिले की बागडोर है प्री से लेकर पौस्ट मेट्रिक छात्रावासों में जाकर छात्रों को अपनी प्रेरणा दायिक मार्मिक जीवन गाथा सुनाते हैं ताकि समास्या या परिस्थितियों से ग्रस्त छात्र अपना मनोबल न खोये ना ही शिक्षा के मार्ग से भटके। विपरीत परिस्थितियों में भी रहकर सफलता को पाया जा सकता है जिसका में जीता जागता उदाहरण हूं। ऐसे उदाहरण देकर छात्रों का मनोबल बढाते है।
*परिवारिक जीवन*-सन 1995 को ग्रहस्थ जीवन में प्रवेश किये। अपकी धर्मपत्नी भी शासकीय शिक्षिका है। आपके दाम्पत्य जीवन मे तीन संताने दो बेटा एवं एक बेटी के रुप मे पैदा हुई जो आज एक बेटा बेटी स्नातक बीए के पढाई पुर्ण करके यूपीएससी (IAS/IPS/) की तैयारी दिल्ली से कर रहे है। एक बेटा छोटा है। आपकी बडी बहन जो लगभग आपसे दो बर्ष बडी थी माँ और बहन का प्यार आपको दिया कढी मेहनत संघर्ष परिश्रम करके आज बहन भी शिक्षिका के पद पर पदस्थ है।
संकलनकर्ता -नीलेश डेहरिया
*प्रधान संपादक उग्र प्रभा समाचार छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश*